दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 

प्रश्न 1. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अ‌द्भुत परम्परा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय और उपशास्त्रीय गायन-वादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्र‌द्धा काशी विश्वनाथजी के प्रति अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं, थोड़ी देर ही सही मगर उसी ओर शहनाई का प्याला घुमा लिया जाता है...... ।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित व्यक्ति-चित्र 'नौबतखाने में इबादत' से लिया गया है। लेखक ने इसमें काशी की कुछ विशेषताओं का वर्णन यहाँ किया है।

व्याख्या: लेखक के अनुसार काशी में संगीत के आयोजन की अद्भुत एवं प्राचीन परंपरा है। यह कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से संकटन मंदिर में होता आ रहा है। यह मंदिर शहर के दक्षिण दिशा में लंका की ओर स्थित है। हनुमान जयंती के पावन अवसर पर यहां पांच दिनों तक शास्त्रीय एवं अर्धशास्त्रीय गायन एवं वादन की उच्चस्तरीय महफिलें सजती हैं। इन कार्यक्रमों में बक्सिल्ला खान जरूर मौजूद रहते हैं. खानसाहब उनकी दौलत हैं. दोनों सिद्धांतों का सम्मिलित रूप खान साहब के निष्कलंक व्यक्तित्व में दृष्टिगोचर होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब वह शहनाई वादन के कारण काशी से बाहर होते हैं, तब भी वह विश्वनाथ और बालाजी की दिशा की ओर मुंह करके बैठते हैं। यह भगवान को श्रद्धांजलि देने का उनका तरीका था।

विशेष - (1) लेखक ने खाँ साहब के व्यक्तित्व में दोनों धर्मों के समन्वय का वर्णन किया है। 
(2) भाषा शैली की सरलता एवं स्वाभाविकता स्पष्ट है। राखाकाना हिन्दी-संस्कृत-उदानिद शब्दों का मिश्रण है। 

प्रश्न 2. जब से मैंने लोगों की देखभाल करना शुरू किया है, हमेशा किसी न किसी तरह से मेरा उनसे टकराव होता रहता है। वे मेरे बीच कई रूपों में मौजूद हैं... न प्रेम के रूप में, न प्रतिक्रिया के रूप में। एक प्रतिनिधित्व के रूप में. वे, जो केवल बनहारी विविधता के प्रति सम्मान के कारण अपनी परंपराओं और परंपराओं का पालन करते हैं, उन्हें वास्तव में यह एहसास क्यों नहीं है कि उनका तत्काल अतीत उनके भीतर कहाँ रहता है? भले ही समय का प्रवाह हमें दूसरे दृश्यों में ले जाए... भले ही समस्याओं का दबाव हमारा रूप बदल दे। देवदूत की तरह हम शरीर से ही नहीं आत्मा से भी मुक्त नहीं हैं?
उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण लेखिका मन्न भंडारी द्वारा लिखित आत्मकथ्य 'एक कहानी यह भी' से लिया गया है। लेखिका अपने पीछे गुजरे समय को याद करती है।

व्याख्या- लेखिका मन्न भंडारी अपने अतीत के पन्नों को खोलती हई अपने पिताजी के विषय में बताती है कि बचपन के बाद जब से होश संभाला पिताजी से किसी न किसी बात पर विचारों की टक्कर, मतभेद चलते रहे। पिताजी का अक्स भी कंठा के रूप में कहीं निराशा के रूप में, कभी प्रतिछाया के रूप में मेरे अस्तित्व में शामिल रहा। बाहरी भिन्नता के आधार पर परम्परा और पीढियों को नकारने वाली मैं इस बात का अहसास भी नहीं कर पाती थी कि मेरा अतीत किस गहराई तक भीतर जड जमाये बैठा है। समय की गति चाहे हमें दूसरी तरफ ले जाए लेकिन कोई भी समय के दबाव से मक्त नहीं हो सकता है। अतीत जब-तब सिर उठाये स्वयं के व्यवहार के माध्यम से सामने आ ही जाता है। कोई भी अपने अतीत से बच नहीं सकता है।

विशेष- (1) लेखिका ने अपने मन की गाँठ को व्यक्त किया है। आत्मकथ्य की विशेषता है कि गुण दोष को निरपेक्ष भाव से व्यक्त करना।

(2) भाषा शैली सरल, सहज व भावबोधक है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2=3

कहउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा ॥ 

माता पितहि उरिन भए नीकें। गुररिनु रहा सोचु बढ़ जी कें॥

 सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बढ़ बाढ़ा। 

अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली ॥ 

सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा ॥ 

भृगुबर परसु देखाबहु मोही। विप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही॥ 

मिले न कबहूँ सुमट रन गाढ़े। ‌द्विज देवता धरहि के बाढ़े।॥

अनुचित कहि सबु लोगुपुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे ॥ 

लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु।

 बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुल भानु ॥


उत्तर- प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। लक्ष्मण की उग्रता से भड़के परशराम के क्रोध पर राम अपनी शीतल वाणी का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्रोध शांत करते हैं।

व्याख्या- लक्ष्मण परशराम से कहने लगे कि हे मुनि! आपके शील-स्वभाव के बारे में कौन नहीं जानता। यह सारा संसार आप से परिचित है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी तरह से उऋण हो चके हैं। इसलिए अब आप पर गुरु का ऋण ही शेष बचा है। उसे उतारने की ही चिन्ता आपके मन में है। लक्ष्मण के द्वारा कहे गये कटु वचनों को सुनकर परशुराम ने अपना फरसा साध लिया। सारी सभा में हाय-हाय की पुकार मच गयी। लक्ष्मण ने फिर से कहा-भृगुवर! परशुरामजी ! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हो और मैं आपको ब्राह्मण समझकर बार-बार लड़ने से बच रहा हूँ। हे क्षत्रियों के शत्रु ! लगता है कि आपका युद्ध-भूमि में कभी पराक्रमी वीरों से पाला नहीं पड़ा, इसलिए हे ब्राह्मण देवता! आप अपने घर में ही अपनी वीरता के कारण फूले-फूले फिर रहे हो।

लक्ष्मण के ऐसे वचन सुनकर सभा में उपस्थित लोग 'अनुचित है', 'अनुचित है' कहने लगे। राम ने भी आँखों के संकेत से लक्ष्मण को बोलने के लिए मना किया। इस प्रकार लक्ष्मण के उत्तर आहुति में घी के समान

भड़काने वाले थे। परशुराम का क्रोध आग के समान था जो लक्ष्मण के वचनों से भड़क उठा था। अतः आग को बढ़ता देखकर श्रीराम जल के समान शीतल वचन बोले।

विशेष- (1) लक्ष्मण द्वारा व्यंग्योक्ति एवं राम द्वारा शीतल वचन का सुन्दर दृश्य उपस्थित हुआ है। श्रीराम का शील स्वभाव एवं लक्ष्मण का उग्र स्वभाव प्रदर्शित होता है।

(2) आजपूर्ण कटुवचन, उपमा-उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग, अवधी भाषा की प्रस्तुति का वर्णन हुआ है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2=3

एक के नहीं,

दो के नहीं,

ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :

एक की नहीं,

दो के नहीं,

लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :

एक की नहीं,

दो की नहीं,

हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :

फसल क्या है?

और तो कुछ नहीं है वह

नदियों के पानी का जादू है वह

हाथों के स्पर्श की महिमा है

भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण-धर्म है 

रूपान्तर है सूरज की किरणों का 

सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश कवि नागार्जुन द्वारा लिखित कविता 'फसल' से लिया गया है। इसमें कवि ने फसल के उत्पन्न होने में सबके सहयोग का वर्णन किया है।

व्याख्या- कवि यहाँ फसल उगाने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में वर्णन करता हुआ कहता है कि ये जो खेतों में फसलें फल-फूल रही हैं, इनमें एक नहीं, दो नहीं, बल्कि सैकड़ों नदियों का जल इन फसलों को सींच रहा है जिसके कारण फसलें तैयार हो रही हैं। इन फसलों को तैयार करने में एक नहीं, दो नहीं, लाखों लाखों और करोड़ों-करोड़ों लोगों के हाथों का स्पर्श मिला है। अर्थात् न जाने कितने किसान- मजदूरों ने इन्हें तैयार किया है।

ये फसलें कहीं भूरी मिट्टी से उपजी हैं, तो कहीं काली मिट्टी से तो कहीं संदली मिट्टी से उपजी हैं।

ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। अर्थात् फसल प्राकृतिक तत्त्वों और मानव श्रम के

सन्तुलित संयोग का प्रतिफल है।

विशेष- (1) फसल का होना प्राकृतिक तत्त्वों और मानव श्रम के सन्तुलित संयोग का प्रतिफल होता है।

(2) भाषा शैली सीधी व सहज है तथा खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।

(3) 'मुक्तछन्द' कोटि की रचना है।

प्रश्न 5. बालगोबिन भगत को साधु क्यों कहा गया है? विस्तार से वर्णन कीजिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- खेती-बाडी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। सादा-सरल जीवन जीने वाले भगत जी 'साहब की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर चुके थे। वे अपने खेतों में पैदा हुई वस्तु को कबीर साहब के मठ पर ले जाकर चढ़ाते फिर प्रसाद रूप में जो मिलता वह लेकर आते। वे साधुओं की तरह ईश्वर और गुरु प्रशंसा के गीत गाते थे। वे दूसरों की चीजों को हाथ तक नहीं लगाते थे। यहाँ तक की राग-द्वेष से ऊपर उठे हुए साधु थे।

प्रश्न 6. नवाब साहिब ने अपने खानदानी रईस होने का भाव किस प्रकार प्रकट किया? 'लखनवी अंदाज' व्यंग्य लेख के आधार पर लिखिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- नवाब साहिब सीट पर पालथी मार कर आराम से बैठे। सामने तौलिये पर कच्च-ताजखार रखा खारा का उठाया, लोटे के पानी से उनको धोया फिर उन्हें पोंछा। जेब से चाक निकाला। पहले खीरों के दोनों सिरों को काटा और गोद कर खीरों का झाग बाहर निकाला। फिर खीरों को सावधानीपूर्वक छील कर और काट कर, करान स सजाया। खीरों पर नमक-मिर्च बरक कर उन्हें संघ कर उनका रसास्वादन करके एक-एक करके खिड़की से बाहर फेंकते गये। इस प्रकार नवाब ने खानदानी रईसी का भाव प्रकट किया।

प्रश्न 7. गोपियों के द्वारा 'हमारे हरि हारिल की लकड़ी कहने का क्या तात्पर्य है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

उत्तर- हारिल पक्षी अपने पंजों में रात-दिन लकड़ी के टुकड़े को थामे रखता है। उसी प्रकार गोपियाँ भी कष्ण को रात-दिन स्मरण करती रहती हैं। हारिल पक्षी के समान कृष्ण प्रेम को न तो भूलती है और न हा कृष्ण क बारे में कुछ भी उल्टा-सीधा सुनती हैं। इसी समानान्तर आधार पर वे कृष्ण को हारिल की लकड़ी बताती हैं।

प्रश्न 8. 'उत्साह' कविता का केन्द्रीय भाव लिखिये। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- निराला क्रांतिकारी विद्रोही कवि माने जाते हैं। उनका उद्देश्य समाज में बदलाव लाना है। बादलों के गरजने बरसने का प्रतीक क्रांति, बदलाव व विद्रोह करना है। इसलिए 'उत्साह' मुख्य रूप से एक आह्वान गीत है। एक तरफ कवि की भावना है कि बादल पीडित व प्यासे जनमानस की आकांक्षाओं को परी करने वाला है तथा दूसरी तरफ वहीं बादल नई कल्पना व नए अंकुर को जन्म देने के साथ-साथ लोगों के अन्तरतम में क्रांतिकारी भावना पैदा करने वाला है।

प्रश्न १. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) - 1

+2=3

आज पीछे मुड़कर देखती हैं तो इतना तो समझ में आता ही है क्या तो उस समय मेरी उम्र थी और क्या मेरा भाषण रहा होगा। यह तो डॉक्टर साहब का स्नेह था जो उनके मुंह में प्रशसा बनकर बह रहा था या यह भी हो सकता है कि आज से पचास साल पहले अजमेर जैसे शहर में चारों ओर से उमड़ती भीड़ के बाच एक लड़की का बिना किसी संकोच और झिझक के यों धुआँधार बोलते चले जाना ही इसके मल में रहा हो। पर पिताजी! कितनी तरह के अन्तर्विरोधों के बीच जीते थे वे। एक ओर विशिष्ट' बनने और बनाने की प्रबल लालसा तो दूसरी ओर अपनी सामाजिक छवि के प्रति भी उतनी ही सजगता। पर क्या यह सम्भव है? क्या पिताजी को इस बात का बिल्कल भी एहसास नहीं था कि इन दोनों का तो रास्ता ही टकराहट का है?

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण मन्नू भण्डारी द्वारा लिखित 'एक कहानी यह भी' से लिया गया है। यहाँ लेखिका अपने बीते समय को याद करती है तथा पिता के विचारों पर मंथन भी करती है।

व्याख्या--- लेखिका कहती है कि आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो इतना ही समझ में आता है कि क्या तो उस समय मेरी उम्र थी और क्या मेरा भाषण रहा। होगा? या फिर यह भी हो सकता है कि पचास साल पहले बिना संकोच के अजमेर। जैसे शहर में उमड़ी भीड़ के सामने एक लड़की बिना संकोच के धुआँधार बोलती चली गयी। यही बात डॉ. साहब के मन में प्रशंसा बनकर बह रही थी। लेकिन मेरे पिताजी को इस बात का अहसास नहीं था। इन दोनों का रास्ता ही टकराहट का है या तो आप सामाजिक छवि बना लें या फिर कुछ विशिष्ट कार्य कर जाएं। दोनों ही अलग-अलग हैं।

विशेष-- (1) लेखिका अपने पिता के अन्तर्विरोधों को यहाँ स्पष्ट करती है।

(2) भाषा-शैली प्रवाहमयी है।

प्रश्न 10. निम्नलिखित पठित ग‌द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1 +2=3

अक्सर समारोहों एवं उत्सवों में दुनिया कहती है ये बिस्मिल्ला खाँ हैं। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब- बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई। शहनाई का तात्पर्य-बिस्मिल्ला खां का हाथ। हाथ स आशय इतना भर कि बिस्मिल्ला खाँ की फेंक और शहनाई की जादई आवाज़ का असर हमारे सिर चढ़कर बोलने लगता है। शहनाई में सरगम भरा है। खाँ साहब को ताल मालूम है, राग मालूम ह। ऐसा नहीं कि बेताले जाएँगे। शहनाई में सात सर लेकर निकल पड़े। शहनाई में परवरदिगार, गंगा मड्या, उस्ताद की नसीहत लेकर उतर पड़े। दनिया कहती-सुबहान अल्लाह, तिस पर बिस्मिल्ला खाँ कहते हैं-अलहमदुलिल्लाह।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण यतीन्द्र शर्मा द्वारा लिखित 'नौबतखाने में इबादत' से लिया गया है। यहाँ लेखक ने खाँ साहब के व्यवहार की विशेषता बताई है।

व्याख्या-- लेखक कहते हैं कि अक्सर खाँ साहब समारोहों और उत्सवों में शहनाई वादन के लिए जाते हैं तो उन्हें देखकर लोग कहते हैं कि ये हैं बिस्मिल्ला खाँ साहब। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब था उनकी शहनाई। शहनाई का अर्थ है बिस्मिल्ला खाँ के हाथ। हाथों का आशय यह है कि उनकी फूंक और शहनाई की जादुई आवाज हमारे सिर पर चढ़कर बोलने लगता है। उनकी शहनाई में सरगम भरा हुआ है। उनको ताल और राग मालूम है। उनकी शहनाई में संगीत के सातों स्वर समाए हुए हैं। उनकी शहनाई में परवरदिगार, गंगा मैया और उस्ताद भी शामिल है। उनकी शहनाई के सम्बन्ध में दुनिया कहती है--- सुभान अल्लाह। जिस पर बिस्मिल्ला साहब कहते हैं-अलहमदुलिल्लाह।

विशेष-- (1) लेखक ने यहाँ खाँ साहब के व्यक्तित्व का सुन्दर पहल पर किया है।

प्रश्न 11. निम्नलिखित पठित पद्द्यांस का सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1 +2=3

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥

 पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूंकि पहारू ॥

 इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥ 

देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥ 

भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहह सही रिस रोकी॥ 

सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥

बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।॥

कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥ 

जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 

सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥

उत्तर- 18. प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद लिया गया है। इसमें लक्ष्मण द्वारा परशुराम को बताया गया है कि रघुकुल में देवता ब्राह्मण, भक्तजन और गाय पर शौर्य प्रदर्शित नहीं किया जाता है।

व्याख्या-- परशुराम के कठोर वचन सुनकर लक्ष्मण कोमल वाणी में बोले अहो, मुनिश्रेष्ठ! तुम अपने

आपको महान् योद्धा मानते हो। इसीलिए आप मुझे बार बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे हो। मानो फंक से ही पहाड़ उड़ा डालना चाहते हो। लेकिन मुनिवर! हम भी कोई कुम्हड़े की बलिया या छुईमुई का पौधा नहीं हैं जो अँगुली देखकर ही कुम्हला जायेंगे। हे मुनिवर! मैंने आपके हाथ में कुठार और कंधे पर धनुष-बाण देखकर ही कुछ अभिमानपूर्वक कहा है। सोचा कि सामने कोई सचमुच योद्धा है। आपको भृगुपुत्र समझकर और यज्ञोपवीत देखकर अर्थात् ब्राह्मण जानकर आपके द्वारा कही गई उचित-अनुचित बातों को मैं अपना क्रोध रोक कर सुन रहा हूँ। क्योंकि देवता, ब्राह्मण, भक्तजन तथा गाय, हमारे कुल में इन पर शौर्य प्रदर्शित नहीं किया जाता है। आप ब्राह्मण हैं, यदि मुझसे आपका वध हो जाए तो मुझे ही पाप लगेगा और यदि आपसे हार जाऊँगा तो अपयश मिलेगा। इसलिए यदि आप मुझे मार भी दें तो भी मुझे आपके पैरों में ही पड़ना पड़ेगा।

हे परशुरामजी! आपके तो वचन ही करोड़ों वज्र के समान कठोर हैं फिर आपने यह धनुष-बाण व्यर्थ में ही धारण कर लिया है। इसलिए इन्हें देखकर यदि मैंने आपको अनुचित कह दिया हो तो हे धैर्यवान महामुनि! मुझे क्षमा कर देना। लक्ष्मण के ये व्यंग्य वचन सुनकर भृगुवंशमणि परशुराम क्रोध सहित गंभीर वाणी में बोले।

विशेष-- (1) परशुराम के क्रोध के प्रति लक्ष्मणं द्वारा रघुकुल की प्रशंसा एवं लक्ष्मण के स्वभाव की उग्रता दर्शाई गई है।

(2) भाषा ओजमयी, प्रवाहपूर्ण एवं अलंकारों से सज्जित है। उत्प्रेक्षा, रूपक अलंकार एवं अवधी भाषा का प्रयोग है।

प्रश्न 19. निम्नलिखित पठित पद्द्यांस का सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!

चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य। 

इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क 

उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क 

देखते तुम इधर कनखी मार 

और होती जब कि आँखें चार 

तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान 

मुझे लगती बड़ी ही छविमान।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश कवि नागार्जुन द्वारा लिखित 'यह दंतुरित मुस्कान' कविता से लिया गया है। इसमें कवि माँ की महिमा को व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या--- कवि नन्हे शिशु को सम्बोधित करके कहता है कि तुम अपनी मोहक छवि के कारण

धन्य हो। तुम्हारी माँ भी तुम्हें जन्म देकर और तुम्हारी सुन्दर रूप-छवि निहारने के कारण धन्य है। दूसरी ओर एक मैं हूँ जो लगातार लम्बी यात्राओं पर रहने से तुम दोनों से पराया हो गया हैं। इसीलिए मझ जैसे अतिथि से तुम्हारा सम्पर्क नहीं रहा। अर्थात् मैं तुम्हारे लिए अनजान ही रहा हूँ। यह तो तुम्हारी माँ है जो तुम्हें अपनी उँगलियों से मधुपर्क चटाती रही, अर्थात् तुम्हें वात्सल्य भरा प्यार देती रही। अब तुम इतने बड़े हो गये हो कि तिरछी नजर से मुझे देखकर अपना मुँह फेर लेते हो, इस समय भी' तुम वही कर रहे हो। इसके बाद जब मेरी आँखें तुम्हारी आँखों से मिलती हैं, अर्थात् तुम्हारा-मेरा स्नेह प्रकट होता है, तब तुम मुस्करा पड़ते हो। इस स्थिति में तुम्हारे निकलते हुए दाँतों वाली तुम्हारी मधुर मुस्कान मुझे बहुत सुन्दर लगती है और मैं तुम्हारी उस मधुर मुस्कान पर मुग्ध हो जाता हूँ।

विशेष-- (1) बच्चे की मुस्कान के मध्य छिपी परिचय की भावना व्यक्त हुई है।

प्रश्न 20. बालगोबिन भगत के गीत सबको क्यों चौंका देते थे? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- कबीरपंथी भगत के गीत सबको जगाने और चौंकाने की अपार क्षमता से पूरित थे। रात में जब लोग अकेले होते थे तब वे उनके गीत-स्वरों पर अवश्य ध्यान देते थे। वे गीतों में 'पियवा' सुनकर अवश्य चौंक पड़ते थे। जिसका आशय होता था कि परमात्मा हर मनुष्य के पास है। जिससे उन्हें अपनी अज्ञानता और अबोधता पर आश्चर्य होता था।

प्रश्न 21. 'लखनवी अन्दाज' कहानी से हमें क्या संदेश मिलता है?

उत्तर- लखनवी अन्दाज़ कहानी से हमें सन्देश मिलता है कि हमें दिखावटी जीवन शैली से हमेशा दूर रहकर वास्तविकता का सामना करना चाहिए, क्योंकि जीवन में स्थूल और सूक्ष्म दोनों का ही महत्त्व है। जो लोग सनक भरी आदतों से पेट भरने का दिखावा करते हैं, वे अवास्तविक हैं। चाहे नयी कहानी के लेखन की ही बात क्यों न हो।

प्रश्न 22. कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद उ‌द्धव के माध्यम से गोपियों के पास जो संदेश भेजा, उसकी गोपियों ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- गोपियों ने यह प्रतिक्रिया व्यक्त की कि हमारे मन की बात मन में ही रह गयी। उन्होंने हमारे साथ प्रेम-निर्वाह के बजाय छल किया। हम सदा ही प्रियतम कृष्ण को सब तरह से अपना मानती रहीं, परन्तु अब वे राजनीति की बातें कर रहे हैं। उनका यह आचरण अनीति से भरा है और राजधर्म के भी विरुद्ध है।

प्रश्न 23. कविता का शीर्षक 'उत्साह' क्यों रखा गया है?

उत्तर- इस कविता का शीर्षक 'उत्साह' इसलिए रखा गया, क्योंकि यह बादलों की गर्जना और उमड- घुमड़ से मेल खाता है। बादलों में भीषण गति होती है, उसी से वे धरती की तपन को हर कर उसे शीतलता प्रदान करते हैं। कवि ऐसी ही गति, ऐसी ही भावना और क्रान्तिकारिणी शक्ति की आकांक्षा रखता है जिससे दुःख-पीड़ित जनता को सुख प्राप्त हो सके।

प्रश्न 24. निम्नाकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) -- 1 +2=3

हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था। इन्हीं खयालों में खोए खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश-भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ चल, फिर रुके, पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही?

उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयं प्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। हालदार साहब चश्मे एवं कैप्टन की कहानी से काफी प्रभावित थे इसलिए वे पान वाले से कैप्टन की जानकारी लेते हैं।

व्याख्या---पान वाले ने जब हालदार साहब को बताया कि मूर्ति पर चश्मे लगाने वाले का नाम कैप्टन

है तो हालदार साहब बहुत प्रभावित हुए। कारण, आज के समय में देश के प्रति या देशभक्तों को लेकर सम्मान व प्रेम की भावना लोगों में कम ही देखने को मिलती है। इन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए हालदार अपनी जीप की तरफ बढ़ते हैं, फिर कुछ सोच कर रुकते हैं, पीछे मुड़कर पुनः पान वाले के पास जाते हैं और उससे कैप्टन के बारे में पूछते हैं कि चश्मेवाला कैप्टन, नेताजी का साथी है या फिर नेताजी द्वारा बनाई गई आजाद हिंद फौज का कोई पुराना सिपाही है?

विशेष--- (1) लेखक ने हालदार साहब के आत्ममंथन द्वारा यह जताने की कोशिश की है कि वर्तमान में देशभक्तों के प्रति लगाव सिर्फ उनके साथ के कारण ही तो नहीं है।

(2) भाषा की सुगढ़ता एवं स्पष्टता प्रशंसनीय है। हिन्दी-उर्दू-संस्कृत सम्मिलित शब्दों का प्रयोग है।

प्रश्न 25. निम्नाकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) --

अपने ऊहापोहों से बचने के लिए हम स्वयं किसी शरण, किसी गुफ़ा को खोजते हैं जहाँ अपनी दुश्चिताओं, दुर्बलताओं को छोड़ सकें और वहाँ से फिर अपने लिए एक नया तिलिस्म गढ़ सकें। हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है। अस्सी बरस से बिस्मिल्ला खाँ यही सोचते आए हैं कि सातों सुरों को बरतने की तमीज़ उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।

उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित 'नौबतखाने में इबादत' से लिया गया है। लेखक ने इसमें बताया है कि बिस्मिल्ला खाँ अपनी शहनाई के सुर को अच्छे से अच्छा बनाने की कोशिश करते थे।

व्याख्या--- लेखक बताते हैं कि हम सभी अपनी उलझनों, समस्याओं से बचने के लिए कोई आसरा, कोई गुफा खोजते हैं। जहाँ पहुँच कर हम अपनी चिंताएँ, अपनी कमजोरियाँ भूल सकें और फिर सब भूल कर सुखों के तिलिस्म में खो जाएँ। हिरण के माध्यम से लेखक बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की तुलना करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि में कस्तूरी छिपे होने से अनजान तथा उसकी खुशबू से परेशान होकर पूरे जंगल में व्याकुल होकर उस कस्तूरी को ढूँढता है जो उसके स्वयं के पास है, उसी प्रकार अस्सी वर्षों से बिस्मिल्ला खाँ यही सोचते आए हैं कि ईश्वर द्वारा प्रदत्त सातों सुरों का ज्ञान खर्च करने का तरीका और सलीका उन्हें अभी तक क्यों नहीं आया है।

कहने का भाव यही है कि अच्छे-से-अच्छे सुर की नुमाइश करने के बाद भी बिस्मिल्ला खाँ हर बार और अच्छा करने का वरदान खुदा से माँगते हैं।

विशेष--- (1) हिरण की व्याकुलता की तुलना बिस्मिल्ला खाँ के हृदय की व्याकुलता से की गई है।

(2) भाषाशैली सरल-सहज व भावपूर्ण है। हिन्दी-उर्दू का प्रयोग स्पष्ट है।

प्रश्न 26. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+ 2=3

हमारे हरि हारिल की लकरी। 

मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।

जागत सोवत स्वन दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री। 

सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।

 सु तौ ब्याधि हमकों लै आए, देखी सुनी न करी।

यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपा, जिनके मन चकरी ॥

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' के 'भ्रमरगीत प्रसंग से लिया गया है। योग सिखाने आये उद्धव को गोपियाँ कृष्ण के प्रति दृढ़ प्रेम को व्यक्त करती हैं।

व्याख्या---- कृष्ण के प्रति अपने दृढ़ प्रेम का वर्णन करती हुई गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे लिए तो कृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान बन गए हैं। अर्थात् जिस प्रकार हारिल पक्षी हर समय अपने पंजों में लकड़ी या तिनके को पकड़े रहता है, उसी प्रकार हम भी निरन्तर अपने कृष्ण का ध्यान करती रहती हैं। हमने मन, वचन और कर्म से नंदनन्दन रूपी लकड़ी को और उनकी स्मृति को अपने मन द्वारा कस कर पकड़ लिया है। अब उसे हमसे कोई भी नहीं छुड़ा सकता है।

गोपियाँ कहती हैं कि हे भ्रमर! तुम्हारी योग की बातें सुनते ही हमें ऐसा लगता है कि मानो हमने कड़वी ककड़ी खा ली हो। इसलिए इस बीमारी को तुम उन लोगों को जाकर दो जिनके मन चकई के समान हमेशा चंचल रहते हैं अर्थात् भटकते रहते हैं।

विशेष--- (1) गोपियों ने अपने प्रेम की दृढ़ता एवं एकनिष्ठता को हारिल पक्षी की उपमा देकर व्यक्त किया है।

प्रश्न 27. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

अरे खिल-खिला कर हँसते, होने वाली उन बातों की॥

मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।

आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपने प्रेम व सुख की वे बातें किसी को नहीं बताना चाहते जो उन्हें छलावा देकर भाग गया।

व्याख्या--- कवि कहता है कि मैं अपनी प्रिया के साथ बिताये जीवन के मधुर क्षणों की कहानी सबके सामने कैसे बताऊँ ? वे तो मेरे प्रेमिल जीवन की निजी अनुभूतियाँ हैं, क्योंकि उस काल में मैंने अपनी प्रिया के साथ जो खिल-खिलाकर हँसते हुए बातें कीं उन बातों को मैं कैसे लिखें। कवि कहते हैं कि मैंने जीवन में जो सुख के स्वप्न देखे थे, वे कभी साकार नहीं हुए। सुख मेरी बाँहों में आते-आते मुस्कुरा कर भाग गया और मेरा अपने प्रिय को पाने का सपना अधूरा ही रह गया।

विशेष---

(1) कवि अपनी मधुर स्मृतियों को याद करके व्यथित हो रहे हैं।

(2) छायावादी प्रतीक शैली तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

प्रश्न 28. "देश-प्रेम किस तरह प्रकट होता है?" नेताजी का चश्मा कहानी के आधार पर बताइए।

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

उत्तर- देश-प्रेम प्रकट करने के लिए न तो बड़े-बड़े नारों और न सैनिक होने की आवश्यकता है। देश- प्रेम तो छोटी-छोटी बातों से प्रकट हो सकता है। जैसे नगरपालिका द्वारा नेताजी की मूर्ति स्थापित करने और कैप्टन द्वारा नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने से देश-प्रेम प्रकट हुआ है।

प्रश्न 29. आज का आदमी भावनाओं से जुडने की बजाय औपचारिकता निभाने में ही विश्वास करता है। कथ्य को 'लखनवी अन्दाज' कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

उत्तर- 'लखनवी अन्दाज़' कहानी में नवाब साहब ने कुछ सोचकर बातचीत पारम्भ करने की दृष्टि से लेखक से कहा, 'आदाब-अर्ज, जनाब, खीरे का शौक फरमाएंगे? यह सुनकर लेखक ने कहा कि-'शुक्रिया

किबला, शौक फरमाएँ। इस प्रकार दोनों के कथनों से औपचारिकता निर्वहन ही स्पष्ट होता है।

प्रश्न 30. कवि की आँख 'फागुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही है? 'अट नहीं रही' कविता के आधार पर लिखिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से इसलिए नहीं हट रही है, क्योंकि उस समय वसन्त ऋतु के आगमन से सारी प्राकृतिक शोभा मनोहारी एवं रंग बिरंगी हो जाती है। कवि का मन उस शोभा को लगातार देखते रहना चाहता है। इसलिए वह इसकी सुन्दरता को निहारता ही रहता है। चाहकर भी वह अपनी आँखों को उस पर से हटाना नहीं चाहता है।

प्रश्न 31. कन्यादान कविता में क्या सन्देश दिया गया है। स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60

शब्द ) 3

उत्तर-'कन्यादान' कविता का सन्देश नारी जागृति से संबन्धित है। पुरुषों द्वारा नारी सौन्दर्य की प्रशंसा करना, वस्त्र और आभूषण का लालच देना वस्तुतः उसे गुलाम बनाये रखने के बंधन हैं। इनसे मुक्त होकर उसे नारी जैसी दुर्बलताओं के प्रति सचेत रहना चाहिए, तभी वह शक्तिशाली बन सकती है।

प्रश्न 31. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2 = 3

कातिक आया नहीं कि बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ शरू हुई, जो फागुन तक चला करीं। इन दिनों वह सबेरे ही उठते। न जाने किस वक्त जगकर वह नदी स्नान को जाते-गाँव स दा माल दूर। वहाँ से नहा-धोकर लौटते और गाँव के बाहर ही, पोखरे के ऊँचे भिंडे पर, अपनी खजड़ी लेकर जा बैठते और अपने गाने टेरने लगते।

उत्तर- प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित रेखाचित्र 'बालगोबिन भगत' से लिया गया है। इसमें लेखक बालगोबिन की दिनचर्या बता रहे हैं।

व्याख्या- लेखक बताते हैं कि बालगोबिन गृहस्थ होने के साथ-साथ संत कबीर के बहत बड़े भक्त थे। कार्तिक का महीना पवित्र महीना माना जाता है जो कि सर्टियों की शरुआत भी होती है। इस महीने के आरम्भ से ही बालगोबिन भगत सुबह धेरे में उठकर गाँव की गलियों में संत कबीर के भजन गाते हुए निकलते थे, जो कि

लान के महीने अर्थात् सर्दी के अन्त तक चला करती थी। उनके उठने का समय किसी को मालूम नहीं पड़ता था। भोर में उठकर नदी स्नान अर्थात् नदी के किनार जाकर स्नान करते थे, जो कि गाँव से दो किलोमीटर दूर थी। वहाँ से स्नान वगैरह करके गाँव के बाहर बने पोखर के ऊँचे चबूतरे पर बैठते और अपने भजन गाने लगते।

विशेष- (1) लेखक ने बालगोबिन की दिनचर्या एवं मधुर भजनों पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 32. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

शहनाई के इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं। वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं-'मेरे मालिक एक सुर बख्श दे।'

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित व्यक्ति-चित्र 'नौबतखाने में इबादत' से लिया गया है। इसमें लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ द्वारा ईश्वर से सुर संगीत देते रहने की प्रार्थना को बताया है।

व्याख्या--- लेखक बताते हैं कि बिस्मिल्ला खॉ जो पिछले अस्सी सालों से अपने द्वारा बजाई जाने वाली मंगल ध्वनि के लिए सुर का वरदान परमात्मा से माँगते आ रहे हैं। ईश्वर द्वारा दिये जाने वाले सुर की भेंट के लिए वे सदैव प्रार्थना करते हैं। अस्सी बरस से पाँचों समय की नमाज उसके बाद की जो प्रार्थना वह इसी सच्चे सुर को माँगने में ही खर्च होती आई है। खुदा के आगे इसी सुर को माँगने के लिए वे सदैव माथा टेकते थे। वे नमाज के बाद हमेशा खुदा के आगे प्रार्थना करते थे कि मालिक मुझे एक सुर दें।

विशेष-- लेखक ने यहाँ खाँ साहब की सुर प्राप्त करने की इच्छा बताई है।

प्रश्न 33. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1 + 2 = 3

बादल, गरजो!

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

ललित ललित, काले धुंघराले,

बाल कल्पना के-से पाले, विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले।

वज्र छिपा, नूतन कविता

फिर भर दो---

बादल, गरजो!

उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत पद्द्यांश महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता "उत्साह' से लिया गया है। यह एक आह्वान गीत हैं। बादलों को बरसने को कहते हैं क्योंकि बादल नई चेतना, नये अंकुर को जन्म देते हैं।

को घेर-घेर कर मूसलाधार वर्षा करो। हे बादल ! तुम अत्यन्त सुन्दर हो। तुम्हारा स्वरूप छोटे बालक

व्याख्या--- कवि बादल को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हे बादल! तुम गरजो! समस्त आकाश के समान है जिसके सिर पर काले घुघराले बाल हैं। कवि कहते हैं कि 'ओ काले रंग के सुन्दर-सुन्दर घुघराले बादल, तुम पूरे आसमान को घेर कर जोरदार ढंग से गर्जना करो।' तुम अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गये हो। तुम अपने हृदय में बिजली की शोभा को धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो। तुम जल रूपी नवीन जीवन प्रदान करने वाले हो। तुम्हारे अन्दर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। तुम मेरे हृदय में नयी कविता को जन्म दो और संसार को फिर से नवीन प्रेरणा से भर दो। हे बादल! तुम गरजो। यहाँ बादलों के माध्यम से कवि नवयुवकों में उत्साह का संचार करते हैं।

विशेष-- कवि द्वारा बादलों का सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त किया गया है, बादल पौरुष और क्रांति का प्रतीक बताया गया है।

प्रश्न 34. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) छाया

मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी 

छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी; 

तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, 

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।

भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना से लिया गया है। इसमें कवि जीवन में दुःख-सुख दोनों की उपस्थिति बताते हैं।

व्याख्या--- कवि अपने मन को सम्बोधित कर कहता है कि हे मन! तू कल्पनाओं के ससार में

विचरण मत करना । उनको याद कर तेरा दुःख दूना हो जायेगा। माना कि तुम्हार जीवन में अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी मनभावन मधुर यादें समायी हुई हैं। उन्हें याद करके तुम्हारे मन में न केवल मनभावन चित्र उभरते हैं, बल्कि उनके साथ जुड़ी मन को अच्छी लगने वाली गंध भी तुम्हारे तन-मन को खुशियों से भर देती है। इस प्रकार पुरानी मधुर यादों में डूब कर पूरी रात बीत जाती है। इस तरह भूला हुआ प्रत्येक क्षण तुम्हारे सामने मानो जीवित होकर खड़ा हो जाता है, परन्तु फिर भी ये यादें छायाएँ ही हैं। इनसे मन को दुगुना दुःख मिलता है।

विशेष-- (1) विगत के सुखों को याद करने से वर्तमान में दुःख अधिक होता है, की भावना व्यक्त हुई है।

प्रश्न 35. 'बालगोलिन भगत' पाठ के आधार पर बताइए की कैसे व्यक्तियो पर ज्यादा नजर रखनी चाहिए।

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- 'बालगोबिन भगत' रेखाचित्र के आधार पर हमें उन व्यक्तियों या बच्चों पर विशेष रूप से नजर रखनी चाहिए जो सुस्त और बोदे होते हैं। अर्थात् जो कम बुद्धि वाले या मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, वे ही निगरानी, स्नेह और दूसरे की कृपा के अधिक हकदार होते हैं।

प्रश्न 36. आर्थिक सिनि खगोजानाति के स्वभाव और विचारों में भी परीवर्तन आ जाता है। 'एक कहानी यह भी' पाठ के आधार पर लिखिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- आर्थिक स्थिति खराब हो जाने पर व्यक्ति की प्रसन्नता, उदारता और सदाशयता नष्ट हो जाती है। वह संकुचित, कंजूस और शक्की हो जाता है। ऐसा व्यक्ति स‌द्भावनाओं से रहित होकर क्रोधी, अहंवादी, प्रतिष्ठा की झूठी शान रखना आदि विरोधी भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है।

प्रश्न 37. लक्ष्मण को परशुराम को मारने पर पाप और अपयश की संभावना क्यों थी?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द ) 3

उत्तर- क्षत्रिय होने के नाते लक्ष्मण की कुल-परम्परा में ब्राह्मण अवध्य माने जाते थे अर्थात् ब्राह्मण- हत्या पाप-कर्म माना जाता था। परशुराम ब्राह्मण थे। अतः युद्ध में यदि परशुराम मारे जाते तो लक्ष्मण को पाप लगता और परशुराम जीत जाते तो वीर क्षत्रिय होने के कारण उनको अपयश मिलता।

प्रश्न 38. दंतुरित मुसकान मृतक में भी जान डालने में समर्थ होती है, कैसे? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- कवि के अनुसार 'दंतुरित मुसकान' मृतक तुल्य व्यक्ति में भी जीवन का संचार कर सकती है। एक संवेदनहीन व्यक्ति भी अबोध एवं सुकुमार शिशु की मोहक मुसकान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। उसके भी हृदय में वात्सल्य की तरंग जगा सकती है।

प्रश्न 38. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) -- 1+2=3

बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह। कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और महब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बडी साध से उसकी शादी कराइ था, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित रेखाचित्र 'बालगोबिन भगत' से लिया गया है। इसमें लेखक ने बालगोबिन के व्यक्तित्व का वह उच्चतम रूप देखा, जब उसके पुत्र की मृत्यु हुई थी।

व्याख्या--- बालगोबिन की साधना की चरम उन्नति का दिन था जब उनके पुत्र की मृत्यु हुई, कि वह उनका इकलौता पुत्र था। स्वभाव से सुस्त और कुछ दबा हुआ सा कमजोर लड़का था। उनकी समझ के अनुसार ऐसे लोगों पर जो कमजोर या निगरानी के हकदार होते हैं उन पर प्रेम-स्नेह का भाव अधिक होना चाहिए। इसीलिए हर माता-पिता, अपनी हर तरह से कमजोर संतान के प्रति अधिक प्रेम- भाव रखते हैं। बालगोबिन ने बड़ी इच्छा और आशा से अपने पुत्र की शादी करवाई थी, पुत्रवधू प्रभु कृपा से बड़ी ही सौभाग्यशाली, सुशील एवं शालीन व्यवहार की मिली थी।

विशेष--- लेखक ने बालगोबिन, उसके पुत्र एवं पुत्रवधू के बारे में बताया है।

प्रश्न 39. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1+2=3

सिकडती आर्थिक स्थिति के कारण और अधिक विस्फारित उनका अह उन्ह इस बात तक की अनुमति नहीं देता था कि वे कम-से-कम अपने बच्चों को तो अपनी आर्थिक विवशताआ का भागीदार बनाएँ। नवाबी आदतें. अधरी महत्त्वाकांक्षाएँ. हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकत चल जाने की यातना क्रोध बनकर हमेशा माँ को कँपाती-धरथराती रहती थीं।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखिका मन्नू भंडारी द्वारा लिखित आत्मकथ्य 'एक कहानी यह भी' से लिया गया है। घर की हालत एवं विपरीत हालातों का वर्णन लेखिका ने इस प्रसंग में किया है।

व्याख्या- लेखिका ने अपने पिताजी की आर्थिक स्थिति की विवेचना करते हुए बताया कि लगातार धनाभाव के कारण पिताजी का स्वभाव क्रोधी व शंकित होता जा रहा था। आर्थिक स्थिति के लगातार गिरने से उनका अहं और अधिक फैलता या बढ़ता जा रहा था। वे नहीं चाहते थे कि उनकी इस दशा व स्थिति का पता किसी को चले। यहाँ तक कि इस स्थिति का भागीदार वे अपने बच्चों को भी नहीं बनाना चाहते थे। सदा से उनके अन्दर ऐशो-आराम की नवाबों वाली आदतें, उनकी अधूरी इच्छाएँ, हमेशा ऊँचाई पर रहने की आदतों ने जब उन्हें जीवन के किनारे पर ला खड़ा कर दिया तो उनका व्यक्तित्व निराशा और नाकामी के कारण गुस्से व क्रोध में बदल गया। उनका क्रोधित रूप सदैव बेचारी माँ को डराता-कँपकँपाता था।

विशेष--- लेखिका ने पिताजी के शक्की व्यवहार के पीछे की वजह पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 40. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1+2=3

ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी। 

पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न त्यागी। 

ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।

प्रीति-नदी में पाउँन बोयों, दृष्टि न रूप परागी।

'सरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी ॥

उत्तर--- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश सूरदास द्वारा रचित है। इसमें गोपियाँ उद्धव पर प्रेमहीन होने की व्यंजना प्रस्तुत कर रही हैं।

व्याख्या--- गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! तुम सचमुच बड़े भाग्यशाली हो, क्योंकि तुम कभी प्रेम के धागे से नहीं बँधे हो, तुम प्रेम-बंधन से उसी प्रकार सर्वथा मुक्त रहते हो, जिस प्रकार कमल का पत्ता हमेशा जल में रहता है, परन्तु उस पर जल का एक भी दाग नहीं लग पाता। अथवा तेल की मटकी को जल के भीतर डुबाने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती। इसी प्रकार तुम भी प्रेम- रूप कृष्ण के हमेशा पास रहते हुए भी कभी उनसे प्रेम नहीं करते, उनके प्रभाव से हमेशा मुक्त बने रहते हो।

गोपियाँ कहती हैं कि तुमने आज तक कभी भी प्रेम-नदी में अपना पैर तक नहीं डुबोया। परन्तु हम तो भोली-भाली अबलाएँ हैं, जैसे चींटी गुड़ पर आसक्त होकर उसके ऊपर चिपट जाती है और फिर उससे अलग नहीं हो पाती है और वहीं अपने प्राण दे देती है।

विशेष-- इस पद में गोपियाँ स्वयं को अबला एवं भोली बताते हए उद्धव को स्नेहहीन व चतुर होने का उपालम्भ देती हैं।

प्रश्न 41. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)--

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया, 

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया। 

प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, 

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।

जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन- 

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

उत्तर--- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना' से लिया गया है। इसमें कवि ने दुःख के पीछे सुख और सुख के पीछे दुःख की भावना को व्यक्त किया है।

व्याख्या--- कवि यथार्थ का बोध कराता हुआ कहता है कि इस संसार में न तो श का कोई मूल्य है, न धन-वैभव का, न मान-सम्मान से कोई सन्तुष्टि मिलती है और न धन-दौलत से सन्तोष मिलता है। मनुष्य इस संसार में रहते हुए इनके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही वह भटकता चला जाता है, क्योंकि भौतिक वस्तुएँ व्यक्ति को भरमाती हैं। प्रभुता या बड़प्पन पाने की कामना भी एक विडम्बना है। यह केवल मृगतृष्णा या छलावा भर ही है। सत्य तो यह है कि हर चाँदनी रात के पीछे एक काली रात छिपी हुई है। इसलिए छायाओं या कल्पनाओं में सुख खोजने की बजाय जीवन के यथार्थ को समझना चाहिए और उसी का पूजन करना चाहिए। इसलिए भूल से भी छायाओं को नहीं छूना चाहिए, उससे तो दुगुना दुःख होगा।

विशेष-

- कवि ने जीवन यथार्थ को समझने पर जोर दिया है क्योंकि भौतिकता सिर्फ दिखावा मात्र है।

प्रश्न 42. 'बालगोबिन भगत' पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर-- 'बालगोबिन भगत' पाठ से हमें सन्देश मिलता है कि गृहस्थ धर्म का पालन कर्मनिष्ठ रहकर करना चाहिए। ईश्वर के प्रति समर्पित हो, ऊँच-नीच के भेद को त्यागकर, नारी को पुरुष के समान समझकर और रूढ़िवादी न होकर विवेक से काम लेना चाहिए।

प्रश्न 43. लेखिका के पिता की कार्य शैली कैसी थी? 'एक कहानी यह भी' पाठ के आधार पर लिखिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर-- लेखिका के पिता विद्वान् लेखक थे। समय की मार ने उन्हें कमजोर बना दिया था, इसलिए उनकी कार्यशैली अव्यवस्थित हो गयी थी। वे फैली-बिखरी पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं आदि के बीच कुछ पढ़ते रहते या फिर 'डिक्टेशन' देते रहते थे। वे घर पर ही आश्रय देकर छात्रों को पढ़ाते भी थे।

प्रश्न 44. 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' पाठ में किन जीवन-मूल्यों को अपनाने का संकेत किया गया है?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- इस पाठ में विनम्रता, मर्यादा पालन और शीलयुक्त आचरण अपनाने का संकेत किया गया है। परशुराम का क्रोधपूर्ण व्यवहार उनके मुनि रूप और वंश के अनुकूल नहीं है। उसी प्रकार लक्ष्मण का व्यवहार भी अपनी कुल-परम्परा और सामाजिक मर्यादाओं के विपरीत है।

प्रश्न 45. 'आत्मकथ्य' कविता में कवि प्रसाद ने महान कवि की विद्रूपता किस प्रकार व्यक्त की है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द ) 3

उत्तर- प्रस्तुत कविता में प्रसाद ने अपनी विनम्रता व्यक्त करते हुए कहा है कि मेरा जीवन अनेक दुर्बलताओं से घिरा रहा है, मेरी कथा सामान्य व्यक्ति की जीवन-कथा है, इस छोटी-सी कथा को अपनी महानता बताकर कुछ लिखना अच्छा नहीं लग रहा है।


प्रश्न 46. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)


बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। वह हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते। स्नान पर उतनी
आस्था नहीं रखते, जितना संत-समागम और लोक-दर्शन पर। पैदल ही जाते। करीब तीस कोस पर
गंगा थी। साध को संबल लेने का क्या हक? और, गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे? अतः, घर से
खाकर चलते, तो फिर घर पर ही लौटकर खाते। रास्ते भर खजड़ी बजाते, गाते, जहाँ प्यास लगती, पानी
पी लेते। चार-पाँच दिन आने-जाने में लगते; किंतु इस लंबे उपवास में भी वही मस्ती। अब बुढ़ापा आ
गया था, किंतु टेक वही जवानी वाली।उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित रेखाचित्र 'बालगोबिन भगत' से लिया गया है। इसमें लेखक ने बालगोबिन के जीवन के अंतिम समय को रेखांकित किया है।

व्याख्या--- बालगोबिन की मृत्यु उन्हीं के स्वभाव के अनुसार हुई। वह हर वर्ष गंगा-स्नान के लिए जाते थे। चूंकि स्नान पर वो इतनी आस्था या विश्वास नहीं रखते थे लेकिन संतों से मिलने, व उनके दर्शनों के प्रति जरूर इच्छा रखते थे। घर से गंगा तीस कोस पर थी, इसलिए पैदल ही जाते। साधु व्यक्ति को किसी के सहारे की क्या आवश्यकता और गृहस्थ जीवनचर्या होने के कारण क्यों किसी से भीख माँगते। अतः अपने घर से खा-पीकर चलते। गंगा तक पहुँचने के रास्ते-भर खंजड़ी बजाते हुए भजनों को गाते हुए चलते, जहाँ प्यास लगती वहाँ पानी पी लेते। गंगा-स्नान से वापस लौटने में उन्हें चार-पाँच दिन लग जाते। किन्तु इस लम्बे व्रत में भी वही अखण्ड मस्ती उनके स्वभाव में दिखाई पड़ती थी। बालगोबिन अब वृद्ध हो चले थे, लेकिन उनमें उत्साह, उमंग और भजन गाने का उच्च स्वर वही जवानी वाला था।

विशेष-- लेखक ने बालगोबिन के मस्त-मौला व्यवहार को बताया है।

प्रश्न 47. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक- दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

उत्तर- प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित 'नौबतखाने में इबादत से लिया गया है। लेखक ने समय के साथ परिवर्तित होती परम्पराओं पर चिंतन व्यक्त किया है।

व्याख्या--- लेखक काशी नगरी के विषय में बताते हैं काशी अब हैरान करने लगी है। काशी के पक्का महाल (स्थान का नाम) पर मिलने वाली मलाई बर्फ गयी, आशय अब नहीं मिलती। संगीत, साहित्य और कायदा, लिहाज सिखाने वाली सभी परम्पराएँ नष्ट हो गई थीं। एक सच्चे सुर की साधना करने वाले तथा सामाजिक रूप से सजग रहने वाले खाँ साहब को इन सारी बातों की कमी अनुचित लगती थी। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ (शिव) और बिस्मिल्ला सदैव एक-दूसरे के साथ रहे हैं उसी तरह, जिस तरह मुहर्रम में ताजिया और होली में गुलाल साथ होते है संस्कृति गंगा-जमुना की भाँति सदैव एक-दूसरे के साथ मनाई जाती रही थी।

विशेष--- लेखक ने काशी की कुछ महत्त्वपूर्ण परम्पराओं पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 48. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1 +2=3

मन की मन ही माँझ रही।

कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।

अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।

 चाहति हुती गुहारि जितहिं हैं, उत तैं धार बही।

'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लही ॥

विशेष-- लेखक ने बालगोबिन के मस्त-मौला व्यवहार को बताया है।

प्रश्न 47. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक- दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

उत्तर- प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित 'नौबतखाने में इबादत से लिया गया है। लेखक ने समय के साथ परिवर्तित होती परम्पराओं पर चिंतन व्यक्त किया है।

व्याख्या--- लेखक काशी नगरी के विषय में बताते हैं काशी अब हैरान करने लगी है। काशी के पक्का महाल (स्थान का नाम) पर मिलने वाली मलाई बर्फ गयी, आशय अब नहीं मिलती। संगीत, साहित्य और कायदा, लिहाज सिखाने वाली सभी परम्पराएँ नष्ट हो गई थीं। एक सच्चे सुर की साधना करने वाले तथा सामाजिक रूप से सजग रहने वाले खाँ साहब को इन सारी बातों की कमी अनुचित लगती थी। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ (शिव) और बिस्मिल्ला सदैव एक-दूसरे के साथ रहे हैं उसी तरह, जिस तरह मुहर्रम में ताजिया और होली में गुलाल साथ होते है संस्कृति गंगा-जमुना की भाँति सदैव एक-दूसरे के साथ मनाई जाती रही थी।

विशेष--- लेखक ने काशी की कुछ महत्त्वपूर्ण परम्पराओं पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 48. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)-- 1 +2=3

मन की मन ही माँझ रही।

कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।

अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।

अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही। 

चाहति हुती गुहारि जितहिं हैं, उत तैं धार बही।

'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लही ॥

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश सूरदास द्वारा रचित 'सूरसागर' के 'भ्रमरगीत प्रसंगी लिया गया है। गोपियाँ उ‌द्धव से कहती हैं कि कृष्ण को अपने मन की बात कह दी नहीं पाई, अपने प्रेम को व्यक्त नहीं कर पाई।

व्याख्या--- उद्धव को गोपियाँ कहती हैं कि हमारे मन की बातें हमारे मन में ही रह गई क्योंकि वे हमें छोड़कर चले गए। इसलिए हे उद्धव! अब हम अपनी बातें किससे और कैसे जाकर कहें? अब तक तो हमें कृष्ण के आने की आशा थी इसलिए उनके प्रेम से प्राप्त तन-मन की पीड़ा को सहन कर रही थीं। लेकिन अब इन योग संदेश को सुन-सुन हमें हमारा विरह और भी जलाने लगा है। गोपियाँ आगे कहती हैं कि हम अगर चाहीं तो आवाज लगाकर कृष्ण को बुलातीं और वे इस विरह अग्नि को अपनी प्रेम-धारा से तत्क्षण ही बुझा देते लेकिन जब श्रीकृष्ण ने ही अपनी मर्यादा को त्याग दिया है तब हम किस प्रकार धैर्य धारण रखें?

विशेष--- गोपियों की विरह-व्यथा एवं कृष्ण के छलनामयी प्रेम को व्यक्त किया गया है।

प्रश्न 49. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) -

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,

देह सुखी हो पर मन के दुख का अन्त नहीं।

दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,

क्या हुआ जो खिला फूल रस-वसंत जाने पर?

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,

छाया मत छूना

मन, होगा दुख दूना।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना' से लिया

गया है। मनुष्य-मन को सन्तुष्टि का भाव रखना चाहिए, जो नहीं मिला उस पर दुःखी नहीं होना

चाहिए का भाव व्यक्त हुआ है।

व्याख्या-- कवि कहता है कि हे मन! तुम्हारा साहस दुविधाओं के कारण नष्ट हो गया है। इसी कारण

चाहे तुम शरीर से सुखी हो, परन्तु तुम्हारे मन में असीम दुःख समाये हुए हैं। तुम्हें इस बात का दुःख है कि शरद् ऋतु आने पर आकाश में चाँद नहीं खिला। और यदि रसमय वसंत के चले जाने के बाद फूल खिलें तो उन खिलने वाले फूलों से क्या फायदा? जिस काल में मनुष्य को प्रिय का सामीप्य मिलना चाहिए था, उस काल में तो मिला नहीं। बाद में उसका मिलना सुख की बजाय दुःख ही पहुँचाता है। अतः व्यक्ति को जो नहीं मिला, उसे भूलकर वर्तमान में ही जीना चाहिए और भविष्य की सुध लेनी चाहिए। क्योंकि कल्पनाओं में विचरण करने से कुछ नहीं मिलता, बल्कि मन का दुःख ही दुगुना हो जाता है। इसलिए कल को याद करके तू अपना आज मत खराब कर।

विशेष--- कवि ने आज को प्रसन्नता से व्यतीत करने का संदेश दिया है। पिछली यादों की कड़वाहट से वर्तमान के सुख खट्टे नहीं करने को कहा है।

प्रश्न 50. हालदार साहब मूर्ति के बारे में सोचते-सोचते किस निष्कर्ष पर पहुँचे? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- हालदार साहब मूति क बार म सोचते-सोचते इस निष्कर्ष पानी वालों का यह प्रयास सराहना के योग्य है। मूर्ति के रंग रूपया नहीं है जितना उसके पीछे निहित देशभक्ति की भावना का है। देशभक्ति की हँसी न उड़ाकर उसका ऐसा सम्मान करना निश्चय ही सराहनीय कार्य है।

प्रश्न 51. 'एक कहानी यह भी पाठ के आधार पर मन्न भण्डारी के व्यक्तित्व की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर मन्नू भण्डारी के व्यक्तित्व की दो. विशेषताएँ ये हैं-

(1) नेतृत्व क्षमता--- उस समय स्वतन्त्रता आन्दोलन' में छात्रों का नेतृत्व किया, प्रभातफेरियों और जुलूसों में भाग लिया। (2) साहित्यिक चेतना मन्नू भण्डारी अपने पिता के साथ गोष्ठियों में भाग लेती थी। प्रो. शीला अग्रवाल के प्रभाव से उनका लेखकीय व्यक्तित्व उभरा।

प्रश्न 52. कृष्ण द्वारा भेजा गया योग सन्देश सुन गोपियाँ हताश और कातर क्यों हो उठीं?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द ) 3

उत्तर- गोपियाँ अनन्य प्रेमनिष्ठा रखकर कृष्ण को ही अपना एकमात्र अवलम्ब समझती थीं। इसलिए वे कृष्ण द्वारा भेजा गया हृदय-विदारक योग-सन्देश सुनकर हताश और कातर हो उठीं, क्योंकि उनका अवलम्ब टूट गया था और वे बेसहारा हो गयीं। उनमें जीवन हेतु कोई अभिलाषा नहीं बची थी।

प्रश्न 53. 'पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है' का आशय स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- 'पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं रही है' का आशय है कि सब जगह फागुन की प्राकृतिक सुन्दरता एवं मादकता रंग-बिरंगे फूल-पत्तों के रूप में इस तरह छा गयी है कि वह मानो तन-मन में समा नहीं रही है और बरबस बाहर प्रकट हो रही है।

प्रश्न 54. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2 =3

आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गई। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको ! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न- रुकते हवलदार साहब जीप से कूदकर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चार कहानी से लिया गया है । कस्बे से गुजरते हुए हालदार साहब ने देखा कि कै की मृत्यु के पश्चात् भी मूर्ति पर चश्मा लगा है उसी का वर्णन किया गया है।

व्याख्या- लेखक बताता है कि आदत से विवश हालदार साहब जैसे ही कस्ले के मध्य से निकले; उनकी आँखें स्वतः ही मूर्ति की तरफ घूम गई, उन्होंने जो दण्य देखा उसे देखकर चीख पड़े और ड्राइवर से कहा जीप रोको। जीप तेज गति में थी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे जिसके कारण तेज आवाज हुई और रास्ते चलते लोग उन्हें रुक कर देखने लगे। जीप पूरी तरह रुक भी नहीं पाई थी कि हालदार साहब जीप से कूद कर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ दौड़ पड़े और ठीक मूर्ति के सामने जाकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए मानो वे नेताजी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हों।

विशेष-- हालदार साहब की मनोदशा का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 55. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)उत्तर- गोपियाँ अनन्य प्रेमनिष्ठा रखकर कृष्ण को ही अपना एकमात्र अवलम्ब समझती थीं। इसलिए वे कृष्ण द्वारा भेजा गया हृदय-विदारक योग-सन्देश सुनकर हताश और कातर हो उठीं, क्योंकि उनका अवलम्ब टूट गया था और वे बेसहारा हो गयीं। उनमें जीवन हेतु कोई अभिलाषा नहीं बची थी।

प्रश्न 53. 'पाट-पाट शोभा श्री पट नहीं रही है' का आशय स्पष्ट कीजिए। (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- 'पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं रही है' का आशय है कि सब जगह फागुन की प्राकृतिक सुन्दरता एवं मादकता रंग-बिरंगे फूल-पत्तों के रूप में इस तरह छा गयी है कि वह मानो तन-मन में समा नहीं रही है और बरबस बाहर प्रकट हो रही है।

प्रश्न 54. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2 =3

आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गई। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको ! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न- रुकते हवलदार साहब जीप से कूदकर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चार कहानी से लिया गया है । कस्बे से गुजरते हुए हालदार साहब ने देखा कि कै की मृत्यु के पश्चात् भी मूर्ति पर चश्मा लगा है उसी का वर्णन किया गया है।

व्याख्या- लेखक बताता है कि आदत से विवश हालदार साहब जैसे ही कस्ले के मध्य से निकले; उनकी आँखें स्वतः ही मूर्ति की तरफ घूम गई, उन्होंने जो दण्य देखा उसे देखकर चीख पड़े और ड्राइवर से कहा जीप रोको। जीप तेज गति में थी। ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे जिसके कारण तेज आवाज हुई और रास्ते चलते लोग उन्हें रुक कर देखने लगे। जीप पूरी तरह रुक भी नहीं पाई थी कि हालदार साहब जीप से कूद कर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ दौड़ पड़े और ठीक मूर्ति के सामने जाकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए मानो वे नेताजी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हों।

विशेष-- हालदार साहब की मनोदशा का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 55. निम्नांकित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सगन्ध और स्वाद की कल्पना से

दोने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है। परन्तु क्या ऐसे तरीक स उदर का तप्ति भी हो सकती है?

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना 'लखनवी अंदाज' से लिया गया है। इसमें लेखक खीरे द्वारा नवाबी रहस्य को प्रकट कर रहे हैं।

व्याख्या--- लेखक ने नवाब साहब की प्रतिक्रियाओं के विषय में बताते हुए कहा कि मैं उनकी सारी गतिविधियों पर गौर कर रहा था अर्थात् ध्यान दे रहा था कि वे किस तरह खीरा इस्तेमाल करते, किस तरीके से उसकी सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से सन्तुष्ट हो रहे थे। लेखक बताते हैं कि उनका यह तरीका सूक्ष्म, बढ़िया या जिसका कोई भौतिक स्वरूप ना हो ऐसा तरीका जरूर कहा जा सकता है परन्तु क्या इस काल्पनिक स्वाद व सुगन्ध से पेट भर सकता है? तभी नवाब साहब की तरफ से भरे पेट होने की डकार का स्वर सुनाई देता है।

प्रश्न 56. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+ 2=3

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।


उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपनी व्यथा न सुनाकर दूसरों की चुपचाप सुनना चाहते

व्याख्या-- कवि कहता है कि मेरे इस छोटे से सामान्य जीवन में अनेक घटनाए घटी हैं। मैं आज उन घटनाओं की बड़ी-बड़ी कहानियाँ कैसे कह दें? इससे तो अच्छा मेरे लिए यही है कि मैं अपने बारे में चुप रहकर दूसरों की कथाएँ सुनता रहूँ। कवि अपन मित्रों से कहता है कि भला तुम मेरी भोली- भाली आत्म-कथा को सुनकर क्या करोगे? उसमें तुम्हारे काम की कोई बात नहीं है और अभी मैंने कोई महानता भी प्राप्त नहीं की है जिसके बारे में मैं अपने अनुभव लिखू। इसके साथ ही एक बातऔर भी है कि इस काल में मेरे जीवन के सारे दुःख-दर्द और व्यथाएँ शान्त हैं। इसलिए मैं उन व्यथित करने वाली स्मृतियों एवं व्यथा-वेदनाओं को फिर से जगा दें।

विशेष--- कवि अपनी जीवन कथा की वेदना व्यथा सनाकर अपने मित्रों को निराश नहीं करना चाहते

प्रश्न 57. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

मृतक में भी डाल देगी जान

धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात...

छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात 

परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत पद्द्यांश नागार्जुन द्वारा रचित "यह दंतरित मुस्कान' कविता से लिया गया है। कवि ने इसमें छोटे बच्चों की मनोहारी मुस्कान देख मन के भावों को प्रकट किया है।

व्याख्या--- कवि नन्हे से बच्चे को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे नन्हे-नन्हे निकलते दाँतों वाली मुसकान इतनी मनमोहक है कि यह मरे हुए आदमी में भी जान डाल सकती है। कवि कहता है कि तुम्हारे इस धूल से सने हुए नन्हे तन को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि मानो कमल के फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में खिल उठे हों जिसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता है।

विशेष--- कवि ने बच्चे की मुस्कान का सजीव वर्णन किया है।

प्रश्न 19. यशपालजी के व्यंग्य लखनवी अंदाज के लिए आप अन्य शीर्षक देना चाहेंगे? तर्क सहित उत्तर लिखिए।

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- यशपालजी के व्यंग्य 'लखनवी अंदाज़ के लिए अन्य शीर्षक के रूप में 'खयाली भोजन' शीर्षक देना चाहेंगे, क्योंकि लखनवी नवाब खीरे के भोग के नाम पर केवल उसकी गंध और स्वाद लेना अपनी शान समझते हैं। इस खयाली अन्दाज से पेट नहीं भरा जा सकता है। इसे 'नवाबी सनक' शीर्षक भी दिया जा सकता है।

प्रश्न 20. 'एक कहानी यह भी' क्या संदेश देती है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- एक कहानी यह भी' हमें कई सन्देश देती है। पहला सन्देश यह है कि स्वतंत्रता और जन- आन्दोलनों में स्त्री-पुरुष की बराबरी की भागीदारी होनी चाहिए। दूसरा सन्देश यह है कि माता-पिता को सन्तान के व्यक्तित्व विकास में किसी भी तरह से बाधक नहीं बनना चाहिए और सन्तानों को भी अच्छी परम्पराओं और पारिवारिक संस्कारों से अलग नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 21. परशुराम की बात सुनकर विश्वामित्र ने क्या प्रार्थना की? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- परशुराम की बात सुनकर मुनि विश्वामित्र ने उनसे प्रार्थना की कि साधुजन बालकों के गुण- दोषों की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसलिए आप लक्ष्मण को गुण दोषों को न देखकर बालक समझकर उनके अपराध को क्षमा करने की कृपा करें।

प्रश्न 22. 'फसल' शीर्षक कविता में कवि क्या संदेश देना चाहता है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर-- कवि संदेश देना चाहता है कि फसलें जीवन का आधार हैं। इन्हें उगाने में अनेक मिट्टी, जल, मानव-श्रम, हवा तथा प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है। अतः इन्हें पैदा करने के लिए प्रकृति और मानव के मध्य उचित भागीदारी आवश्यक है।

प्रश्न 23. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1 +2=3

नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फॉकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निःश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए। फॉक को सूघा। स्वाद के आनन्द में पलकें मुंद गई। मुँह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फॉक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फॉकों को नाक के पास ले जाकर, वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए।

उत्तर- प्रसंग--- प्रस्तुत अवतरण लेखक यशपाल द्वारा रचित व्यंग्य रचना 'लखनवी अंदाज' से लिया गया है। इसमें लेखक ने रईसों के खीरे खाने के खानदानी तरीकों को बताया है।

व्याख्या--- लेखक नवाब साहब के सारे क्रिया-कलापों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। नवाब साहब ने बड़ी इच्छा से अपनी आंखों द्वारा नमक-मिर्च लगी चमकते खीरे के टुकड़ों को देखा। खिड़की से बाहर

की ओर देखते हुए लम्बी साँस भरते हैं। खीरे की एक फॉक को उठाकर होठों तक ले गए, फाँक को सूघा, उसका स्वाद लेने का जो काल्पनिक आनन्द था उसके अतिरेक में उनकी आँखें बंद हो गयीं। फांक को खाने के स्वाद में मुँह में भर आये पानी को गटक लिया, जब नवाब साहब ने फॉक का काल्पनिक स्वाद पूरी तरह से ले लिया तब उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया।

विशेष- लेखक ने नवाबी रईसी तरीकों पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 24. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

सचमुच हैरान करती है काशी-पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्ला खाँ एक- दूसरे के पूरक रहे हैं, उसी तरह मुहर्रम-ताजिया और होली-अबीर, गुलाल की गंगा-जमुनी संस्कृति भी एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

उत्तर- प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण लेखक यतीन्द्र मिश्र द्वारा लिखित व्यक्ति-चित्र 'नौबतखाने में इबादत से लिया गया है। लेखक ने समय के साथ परिवर्तित होती परम्पराओं पर चिंतन व्यक्त किया है।

व्याख्या- लेखक बताते हैं कि काशी अब हैरान करने लगी है। काशी के पक्का महाल (स्थान का नाम) पर मिलने वाली मलाई बर्फ गयी, आशय अब नहीं मिलती। संगीत, साहित्य और कायदा, लिहाज सिखाने वाली सभी परम्पराएँ नष्ट हो गई थीं। एक सच्चे सुर की साधना करने वाले तथा सामाजिक रूप से सजग रहने वाले खाँ साहब को इन सारी बातों की कमी अप्रिय या अनुचित लगती थी। काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ (शिव) और बिस्मिल्ला सदैव एक-दूसरे के साथ रहे हैं उसी तरह, जिस तरह मुहर्रम में ताजिया और होली में गुलाल साथ होते हैं। दो संस्कृति गंगा-जमुना की भाँति सदैव एक-दूसरे के साथ मनाई जाती रही थी। । ।

विशेष- लेखक ने यहाँ काशी की परम्पराओं पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 25. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+2=3

लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना ॥

का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरे ॥

छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥

बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥

उत्तर- प्रसंग - प्रस्तुत पद्द्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। यहाँ लक्ष्मण व परशुराम के मध्य संवाद होता है। जिसमें लक्ष्मण द्वारा किया गया उपहास परशुराम की क्रोधाग्नि में घी डालने का कार्य करता है।

व्याख्या-लक्ष्मण हँसकर परशुराम से बोले-हे देव! मेरी समझ से सारे धनुष एक समान हैं। पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ-हानि, श्रीराम ने इसे नए के धोखे में देखा था। लेकिन यह तो छूते ही टूट गया, इसमें श्रीराम का क्या दोष है? इसलिए हे मुनि! आप बिना कारण ही क्रोध क्यों कर रहे हैं? अपने फरसे की ओर देखकर परशुराम बोले-रे मूर्ख! तूने मेरे स्वभाव को अभी नहीं सुना है।

विशेष- परशुराम की क्रोधाग्नि को भड़कते यहाँ दिखाया गया है।

प्रश्न 26. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।

अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में। उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पट्यांश कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपनी मधुर स्मृतियों को याद कर रहे हैं।.

व्याख्या-कवि स्मरण कर कहता है कि मेरी प्रिया के लाल-लाल कपोल इतने मतवाले और सुन्दर थे कि प्रेममयी उषा भी अपनी सुगन्धित मधुर लालिमा उसी से उधार लिया करती थी।

कवि कहता है कि आज उसी प्रेमिका की स्मृतियों मुझ जैसे थके पथिक के लिए संबल बनी हुई हैं और उसी संबल के सहारे मैं जीवन रूपी रास्ते पर चल रहा हूँ। ऐसी स्थिति में हे मित्र! क्या तुम मेरी उन मधुर यादों की गुदड़ी को उधेड़-उधेड़ कर उनके भीतर झाँकना चाहते हो।

विशेष- कवि ने अपने जीवन की व्यथाओं को स्पष्ट किया है।

प्रश्न 27. बालगोबिन भगत के संगीत को लेखक ने जादू क्यों कहा है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर-खेतों में काम करते समय जब उनका संगीत-स्वर लोगों को सुनाई देता था तो खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेंड़ों पर खड़ी औरतें गुनगुनाने लगती थीं, हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते थे। इसलिए लेखक ने बालगोबिन भगत के संगीत को जादू कहा है।

प्रश्न 28. उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की काशी को क्या देन है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने काशी को हिन्दू-मुस्लिम एकता की मूल्यवान संस्कृति दी। उन्होंने मुसलमान होकर भी गंगा को मैया माना। बालाजी तथा बाबा विश्वनाथ के प्रति गहरी आस्था प्रकट कर काशी को जन्नत जैसा पवित्र माना। इस तरह की आस्था से उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाने में सहयोग किया।

प्रश्न 29. 'उत्साह' शीर्षक कविता में कवि ने बादलों के सम्बन्ध में क्या-क्या कहा है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

उत्तर-कवि ने बादलों के सम्बन्ध में कहा है कि वे वज्रपात की शक्ति रखने वाले. नवीन सृष्टिकर्ता, जल रूपी नव जीवन देने वाले, संसार को नव प्रेरणा देने वाले और धरती को शीतलता देने वाले होते हैं। वे सामाजिक क्रान्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 30. कन्यादान कविता में बेटी को अन्तिम पूँजी क्यों कहा गया है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर--- प्रस्तुत कविता में बेटी को अन्तिम पूँजी इसलिए कहा गया है कि वह माता पिता की लाड़ली होती है। कन्यादान के समय वह संचित पालित पूँजी की तरह दसरों को सौंप दी जाती है। वह माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुःख की साथी होती है। उसके ससुराल चले जाने पर माँ अकेली रह जाती है।

प्रश्न 31. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1 +2=3

जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हालदार साहब उस मूर्ति के बारे में सोचते रहे और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा

जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप, कद का नहीं, उस भावना का है वरना तो देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।

उत्तर- प्रसंग प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित कहानी 'नेताजी का चश्मा' से लिया गया है। इस अवतरण में हालदार साहब नेताजी की मूर्ति एवं उसके पीछे छिपे देशभक्ति के भाव- विचार के बारे में सोच रहे हैं।

व्याख्या--- जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गयी। इसके बाद भी हालदार साहब मर्ति के बारे में सोचते रहे और अंत में उनकी सोच का यही परिणाम निकला कि कुल मिलाकर कस्बे के स्थानीय नागरिकों का मूर्ति को चश्मा पहनाने का प्रयास प्रशंसा के योग्य है। महत्त्व मूर्ति के रूप, रंग, कद का नहीं होता है बल्कि उस भावना का होता है. जो सबके दिलों में मौजूद रहती है। उस देशभक्ति की भावना के मन में प्रदीप्त होने के कारण ही यह मूर्ति लगी और सामर्थ्यनुसार उस पर चश्मा भी लगाया गया। कला तो देशभक्ति की सोच व उसके प्रति कर्तव्य-भावना भी लोगों के मध्य मजाक का विषय बनती जा रही है। लोग देशभक्तों का मजाक बनाते हैं।

विशेष-- लेखक इसके माध्यम से कस्बे के लोगों के दिलों में स्थित देशभक्ति के जज्बे को बता रहे हैं।

प्रश्न 32. निम्नलिखित पठित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

जब रगों में लहू की जगह लावा बहता हो तो सारे निषेध, सारी वर्जनाएँ और सारा भय कैसे ध्वस्त हो जाता है, यह तभी जाना और अपने क्रोध से सबको थरथरा देने वाले पिताजी से टक्कर लेने का जो सिलसिला तब शुरू हुआ था, राजेन्द्र से शादी की, तब तक वह चलता ही रहा।

उत्तर--- प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण मन्नू भंडारी द्वारा लिखित 'एक कहानी यह भी' से लिया गया है। आजादी का समय और पिताजी की रोक-टोक, दोनों ही स्थितियों का वर्णन इस प्रसंग में किया गया है।

व्याख्या--- लेखिका बताती है कि युवाओं की नसों में रक्त, जब लावा बन जाता है अर्थात् उनके रक्त में क्रोध, उन्माद, उत्साह सभी मिलकर लावे का रूप ले लेता है, तब उनके लिए सारी बाधाएँ, सारे नियम और सारा डर, भय नष्ट हो जाता है। उन्हें अपने जोश के समक्ष और कुछ नहीं नजर आता है। वे डर, भय की सभी सीमाओं को पार कर आगे बढ़ जाते हैं। यह बात सत्य है। इसका ज्ञान लेखिका को तभी हुआ जब उनकी क्रोध से सबको डरा देने वाले पिताजी से अपने विचारों को लेकर टकराहट शुरू हुई और यह टकराहट लेखिका ने शादी की राजेन्द्र यादव से, तब तक चलती रही। कभी भी पिता-पुत्री के विचार एक नहीं हो पाये।

विशेष-- लेखिका ने अपने पिता के प्रति विद्रोह की अभिव्यक्ति की है।

प्रश्न 33. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 1+ 2=3

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा ॥ सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेड कर घोरा ॥ अब जनि देड़ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू ॥ बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा ॥

उत्तर- प्रसंग- प्रस्तुत पद्द्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है । लक्ष्मण द्वारा कठोर वचनों के प्रयोग पर परशुराम विश्वामित्र को उन्हें समझाने को कहते हैं, उसी का प्रसंग उपस्थित है।

व्याख्या--- लक्ष्मण परशुराम से कहने लगे कि आप तो मानो मृत्यु को हाँक लगा-लगाकर अर्थात् आवाज दे-देकर मेरे लिए बुला रहे हैं। लक्ष्मण की कठोर बातें सुनकर परशुराम ने अपने फरसे को सँभाल कर हाथ में ले लिया और कहने लगे कि आप लोग अब मुझे इस बालक के वध के लिए दोष मत देना, क्योंकि यह बालक कटु-वचन कहने के कारण वध के योग्य है। मैं तो इसे बालक समझकर अब तक बहुत बचाता रहा, परन्तु अब यह वास्तव में ही मारने योग्य हो चुका है।

विशेष-- परशुराम के क्रोध के सम्बन्ध में विश्वामित्र की सोच वर्णित है।

प्रश्न 34. निम्नलिखित पठित पद्द्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द)

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन, आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन! तप्त धरा, जल से फिर शीतल कर दो-

बादल, गरजो!

उत्तर- प्रसंग-- प्रस्तुत पद्द्यांश महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'उत्साह से लिया गया है। इसमें कवि ने गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में वर्णन किया है।.

भावार्थ- कवि बादल को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि हे बादल! गर्मी की तपन के कारण सारी धरती के लोग व्याकुल तथा बेचैन हो रहे हैं। इस कारण इनका मन कहीं और नहीं लग रहा है। है बादल! तुम बरस कर इस गर्मी के ताप से तपी हुई इस धरती को शीतलता प्रदान करो। हे बादल! गरज कर बरसो। धरती पर वर्षा हो जाने के बाद लोग भीषण गर्मी से राहत पाते हैं।

विशेष- बादल जन-आकांक्षाओं की पूर्ति का साधन हैं जो उमड़-घुमड़ कर अपनी करुणा रूपी जल- वर्षा से धरती को हरा-भरा करते हैं।

प्रश्न 35. नेताजी की मूर्ति के पास से गुजरते हुए अन्त में हालदार साहब के भावुक होने के क्या कारण थे?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- नेताजी की मूर्ति के पास से गुजरते हुए अन्त में हालदार साहब के भावुक होने के मुख्य रूप से दो कारण थे-(1) कैप्टन के न रहने पर कस्बे के बच्चों ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर अपनी देशभक्ति की भावना व्यक्त की थी और (2) उनके द्वारा किए गए नेताजी का सम्मान देखकर वे बहुत ही भावुक और प्रसन्न हो उठे थे।

प्रश्न 36. बालगोबिन भगत के गायन का कौनसा गुण आपको प्रभावित करता है? (उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- भगतजी का गायन मस्ती और तल्लीनता से भरा होता था। इसलिए जब वे गाने बैठते तो वे गाते-गाते स्वयं को भी भूल जाते। उन्हें सर्दी और कुहरे की भी याद नहीं रहती और वे स्वयं गीतमय हो जाते थे। वे गाते-गाते इतने उत्साहित और मस्त हो जाते थे कि भीषण सर्दी में भी उनके मस्तक से पसीना झलकने लगता था।

प्रश्न 37. 'होइहि केउ एक दास तुम्हारा' राम के इस कथन में किस जीवन सत्य का बोध होता है?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- राम के इस कथन से उनकी बड़ों के प्रति विनम्रता, निडरता और सत्यप्रियता छलकती है। हमें सत्य वचनों की रक्षा करते हुए बड़ों के समक्ष अपने विचार निडरता के साथ व्यक्त करने चाहिए लेकिन विनम्रता को त्यागना नहीं चाहिए।

प्रश्न 38. यह दंतुरित मुसकान कविता के आधार पर बताइए कि शिशु कवि को अनिमेष क्यों देखता है?

(उत्तर-सीमा लगभग 60 शब्द) 3

उत्तर- कवि शिशु को अनिमेष इसलिए देखता है, क्योंकि शिशु ने अपने अनजान पिता को इससे पहले कभी नहीं देखा जिसके कारण वह उसे पहचान नहीं पाता लेकिन बाल मनोविज्ञान के आधार पर उत्सुकता के कारण वह अनिमेष देखता रहता है।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न दीर्घ उत्तरीय प्रश्न Reviewed by Digital India English on February 03, 2024 Rating: 5

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